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सैकड़ों वर्षों तक गुलामी की जंजीरों में बंधा अपमानित यह राष्ट्र, जीवन की अपनी नियति पर आंसू बहाता रहा। एक और विदेशी आक्रांताओं से संघर्ष करता हुआ दूसरी ओर अपनी कुरीतियों, रूढ़ियों, ढकोसलों और जाति भेदों में बँटा हुआ अपना समाज जंजीरों में जकड़ता चला गया। कैसा विचित्र समय आया!
इसी परंपरा में इस शताब्दी के अत्यंत ही प्रखर एवं तेजस्वी नक्षत्र के रूप में आए डॉक्टर अंबेडकर। स्वयं गरीबी एवं अभावों में जन्मे लेकिन अस्पृश्यों के अपरिमित दुखों को देखकर वह इस अवस्था के विरोध में संघर्ष करने के लिए खड़े हुए। जितना उनको अपमानित होना पड़ा उतना ही उनका संकल्प दृढ़ होता गया। वास्तव में डॉक्टर अंबेडकर किसी वर्ग विशेष के नेता नहीं थे। वे संपूर्ण भारतवर्ष के और सारी मानवता के पथ-प्रदर्शक थे। इस पुस्तक में राष्ट्र के प्रति उनकी महती भूमिका को दिखाया गया है।
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