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प्रस्तुत पुस्तक में विषम परिस्थितियों में सामाजिक समरसता और हिंदुत्व का क्या महत्व है, इसे बाला साहब देवरस जी द्वारा दिए गए बौद्धिक वर्गों का एक संकलन लेखन के माध्यम से दिया गया है। यह केवल स्वयंसेवकों के लिए नहीं बल्कि संपूर्ण समाज के लिए हितकारी और प्रेरक सिद्ध होगा। हिंदू कौन है? धर्मांतरण का दोषी कौन? अस्पृश्यता तथा सामाजिक समता, एकता का आधार कैसे हो सकता है? इन महत्वपूर्ण बिंदुओं पर अलग-अलग विषय वस्तु प्रस्तुत किए गए हैं। 1974 की तत्कालीन चुनौतियों और उस परिपेक्ष्य में संघ के व्यवहार पर भी पुस्तक में चर्चा मिलती है। संघ का कार्य-विस्तार, जिम्मेदारियां तथा भ्रष्टाचार की जड़ कहां? जैसे विषय पर भी बौद्धिकों का हिस्सा पुस्तक में पढ़ सकते हैं। संस्थापक डॉ० हेडगेवार तथा संघ विस्तारक श्री गुरुजी के कई उद्बोधनों का संकलन भी इस पुस्तक में किया गया है।
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