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प्रस्तुत पुस्तक में मूल रूप से 'पश्चिम के विकास की अवधारणा का मनुष्य के सुख व कल्याण से कोई नाता रिश्ता नहीं है' इस परिभाषा पर विशेष प्रकाश डाला गया है। लेखक का सुमंगलम से अर्थ यह है कि मुख्य तत्व साधनों से देश के समस्त लोगों की समग्र जीवन स्तर को ऊपर उठाते हुए दीर्घकालीन सामाजिक सुख में वृद्धि करना एवं सब के मंगल की दिशा में आगे बढ़ना। अपने शाश्वत जीवन मूल्यों के प्रकाश में अपने देश व समाज की प्रकृति, प्रवृत्ति,आशा -आकांक्षा आवश्यकता और सामाजिक -आर्थिक परिस्थितियों के संदर्भ में मुख्यता अपने ही शक्ति सामर्थ्य साधन संपदा एवं कौशल प्रतिभाओं के बलबूते पर देश की कर्म शक्ति व ऊर्जा शक्ति के जागरण के माध्यम से सर्वोच्च मुखी विकास का दर्शन प्रस्तुत किया गया है। पश्चिमी विकास दर्शन एवं विकास मॉडल की विवेचना पुस्तक में स्पष्ट रूप से दी गई है। विकास का नया मापदंड मानव विकास सूचक रखा गया, जो एक सुखद प्रयोग है। साथ ही विभिन्न देशों के विकास क्रमांक व उन से उपजे प्रश्न, विसंगतियों पर विचार भी प्रस्तुत किए गए हैं।
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